डेरेक प्रिंस के जीवन, सेवा और विरासत

डेरेक प्रिंस एक अंतर्राष्ट्रीय बाइबल शिक्षक थे, जो अपनी धर्मवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और ईमानदार मसीही विश्वास के लिए अत्यधिक सम्मानित थे। वह 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं जो हर वर्ष हजारों नये पाठकों को आकर्षित करती रहती हैं।

डेरेक प्रिंस

सेवा
अंतर्राष्ट्रीय बाइबल शिक्षक, लेखक, पास्टर मिशनरी और धर्मविज्ञानी
जन्म
14 अगस्ट 1915, बैंगलोर, भारत
मृत्यु
24 सितंबर 2003 (आयृ 88), यरूशलेम, इस्राएल

विषय वस्तु

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आरंभिक जीवन

डेरेक प्रिंस का जन्म 1915 में भारत के बैंगलोर में एक ब्रिटिश सैन्य परिवार में हुआ था। 14 साल की उम्र में उन्होंने ईटन कॉलेज में छात्रवृत्ति प्राप्त किया, जहाँ उन्होंने यूनानी और लतीनी भाषा का अध्ययन किया। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में अपनी शिक्षा जारी रखी, जहाँ उन्होंने किंग्स कॉलेज में प्राचीन और आधुनिक दर्शनशास्त्र में फैलोशिप प्राप्त किया। डेरेक ने इब्रानी और अरामी सहित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भाग लेने के दौरान कई आधुनिक भाषाओं का भी अध्ययन किया, जिसे बाद में उन्होंने यरूशलेम में इब्रानी विश्वविद्यालय में परिष्कृत किया।

हालाँकि डेरेक का पालन-पोषण एंग्लिकन चर्च में हुआ था, उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी ईसाई जड़ों को त्याग दिया और एक नास्तिक विश्वदृष्टि को अपनाया। तृतीयक अध्ययन के उन वर्षों पर विचार करते हुए, उन्होंने बाद में कहाः

‘‘मैं बहुत से लंबे शब्दों और वाक्यांशों को जानता था, और मैंने बहुत सी अलग-अलग चीजों की कोशिश की थी। लेकिन, पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि मैं भ्रमित और निराश, निरुत्साहित और मायूस था, और मुझे नहीं पता था कि इसका उत्तर कहाँ मिलेगा।

विश्व युद्ध 2

डेरेक का शैक्षणिक करियर द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ बाधित हो गया था। 1940 में वह अपने व्यक्तिगत विश्वासों के आधार पर रॉयल आर्मी मेडिकल कोर में एक गैर-लड़ाकू सैनिक के रूप में भर्ती हुए। सक्रिय सैन्य सेवा के दौरान अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए, डेरेक अपने साथ एक बाइबल ले गए, जिसे वह उस समय परमेश्वर के प्रेरित वचन के बजाय एक दार्शनिक कार्य मानते थे।

1 जुलाई 1941 को, यॉर्कशायर के स्कारबोरो में एक प्रशिक्षण बैरक में तैनात रहते हुए, उन्होंने यीशु के साथ एक शक्तिशाली भेंट का अनुभव किया, जो उनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। उस अनुभव को याद करते हुए उन्होंने कहाः

‘‘मैंने बहुत स्पष्ट रूप से पवित्रशास्त्र, बाइबल के माध्यम से बोलते हुए यीशु की आवाज सुनी। और जिस दिन से मैंने उसकी आवाज सुना, तब से आज तक, ऐसी दो चीजें हैं जिन पर मैंने कभी संदेह नहीं किया। मैंने कभी संदेह नहीं किया कि यीशु जीवित है, और मैंने कभी संदेह नहीं किया कि बाइबल परमेश्वर का वचन है।’’

इसलिए 20वीं सदी के सबसे प्रमुख बाइबल शिक्षकों में से एक की आत्मिक यात्रा आरंभ हुई।

अपने मसीही धर्मपरिवर्तन के लगभग तुरंत बाद ही, डेरेक को उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तान में सक्रिय नौकरी में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्होंने सेना की चिकित्सा इकाई में तीन वर्ष बिताए। उन्होंने अपना खाली समय बाइबल का अध्ययन करने और परमेश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने के लिए समर्पित किया।

युद्ध के समापन पर, यह देखते हुए कि यहूदी लोगों की इस्राएल में वापसी के साथ बाइबल की भविष्यवाणी की पूर्ति हुई, यरूशलेम में तैनात रहने के दौरान डेरेक को सेना से छुट्टी दे दी गई।

लिडिया प्रिंस

1946 में, डेरेक ने अपनी पहली पत्नी लिडिया क्रिस्टेंसन से विवाह किया, जो एक डेनिश मिशनरी थी, जो यरूशलेम के पास एक बच्चों का घर चलाती थी। इस प्रकार, वह आठ दत्तक लड़कियों के पिता बन गए।

1948 में यहूदी राज्य इस्राएल की स्थापना के बाद तक डेरेक और लिडिया यरूशलेम में रहते रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अरब और इस्राएली सेनाओं के बीच पकड़े गए, वह अपने घर से निकाल दिये गये और अनिच्छा से इंग्लैंड भेज दिये गए। एक बार मध्य लंदन में बसने के बाद, डेरेक ने हाइड पार्क में स्पीकर कॉर्नर में प्रचार करना शुरू किया, जिसमें अक्सर लिडा और कुछ लड़कियाँ उनके साथ होती। कई बार, उपस्थित लोगों को परिवार के घर में आगे की सेवकाई के लिए आमंत्रित किया जात, और एक नई कलीसिया का जन्म हो जाता। यह 1956 तक जारी रहा जब तक प्रिसं ने परमेश्वर की बुलाहट का प्रत्युŸार नहीं दिया और जनवरी 1957 में मिशनरियों के रूप में केन्या नहीं चले गए।

बाद के वर्षों में, डेरेक और लिडिया ने स्थानीय लोगों की सेवा करते हुए बहुत फल देखा, जिसमें एक लड़की भी शामिल थी जिसे प्रार्थना के द्वारा से मृतकों में से जिलाया गया था।

1962 तक, दंपति ने एक अनाथ केन्याई शिशु को गोद ले लिया था और कनाडा में छुट्टी पर थे। डेरेक से 25 वर्ष वरिष्ठ लिडिया, अपने सत्तर के दशक की शुरुआत में थी और मित्रों और अन्य विश्वासियों के करीब बसने के लिए तरस रही थी। इस जरूरत से प्रेरित होकर, डेरेक ने मिनियापोलिस के एक पेंतिकुस्तीय कलीसिया में बाइबल शिक्षक बनने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

डेरेक एवं लिडिया प्रिंस

हालाँकि, दशक के अंत से पहले, प्रिंस क्रमशः तीन बार सिएटल, शिकागो और फोर्ट लॉडरडेल, की ओर आगे बढ़े। सेवकाई के विकास ने नए और अप्रत्याशित द्वार खोले, लेकिन यह दंपति परमेश्वर की वर्तमान बुलाहट के प्रति विश्वस्त बने रहे।

1968 तक, डेरेक की शिक्षा सेवा उभरते करिश्माई प्रवृŸिा में बुखार की पिच तक बढ़ गया था। उन्होंने सामथ्र्य और अधिकार के साथ वचन का प्रचार करते हुए, बड़े पैमाने पर यात्रायें की।

5 अक्टूबर 1975 को, 85 वर्ष की आयु में परिवार से घिरी लिडिया प्रिंस का शांतिपूर्वक निधन हो गया। वह ‘यरूशलेम में नियुक्ति’ की लेखिका हैं, जो उनकी मृत्यु से कुछ समय पुर्व उसी वर्ष प्रकाशित हुई थी।

रूत प्रिंस

1978 में, डेरेक ने अपनी दूसरी पत्नी रूत बेकर से विवाह कियर, जो तीन दत्तक बच्चों की एक अमेरिकी एकल माँ थी। जब डेरेक मित्रों के साथ इस्राएल भ्रमण कर रहे थे तब वे यरूशलेम में मिले थे।

साथ में, ‘टुडे विद डेरेक प्रिंस’ नामक एक दैनिक रेडियो कार्यक्रम के शुभारंभ के साथ सेवा का एक नया चरण आरंभ हुआ। यह मूल रूप से आठ रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित होती है जिसमें श्रोताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है और सेवा की विरासत मजबूत हुई है। आज, ये रिकॉर्डिंग दुनिया भर में वितरित की गई हैं और विभिन्न्न भाषाओं में उपलब्ध हैं।

डेरेक और रूथ की प्रेम कहानी का विवरण ‘गॉड इज ए मैचमेकर’ नामक पुस्तक में उल्लिखित है, जिसका उन्होंने सह-लेखक किया है और 1986 में प्रकाशित किया गया था।

डेरेक और रूथ प्रिंस 1985 में ज़ाम्बिया में ज़ाम्बिया नदी के किनारे एक तस्वीर के लिए पोज देते हुए

एक अपेक्षाकृत छोटी बीमारी के बाद 29 दिसंबर 1998 को यरूशलेम में रूत का निधन हो गया था जिसका कभी ठीक तरह से उपचार नहीं किया गया। वह 68 वर्ष की थीं और उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक डेरेक के साथ मिलकर विश्वस्तता से सेवा की थी।

दुख से उबरे, डेरेक के हृदय में कटुता का झांगं उठने लगा। एक अशुद्ध शक्ति को महसूस करते हुए जो अंततः उसे परमेश्वर से दूर कर देती, उन्होंने रूत के अंतिम संस्कार में एक सार्वजनिक घोषणा की जो उनके शेष वर्षों को परिभाषित करती। जैसे ही ताबूत को उतारा गया, डेरेक ने ईमानदारी से अपने स्वर्गीय पिता के लिए अपने प्रेम और विश्वास की पुष्टि करते हुए उन सभी कार्यों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया, जो उसने रूत के जीवन में किए थे। उस समय पर विचार करते हुए बाद में उन्होंने कहाः

‘‘यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण था। मुझे पता था कि रूत के बारे में जो विलाप मैंने महसूस किया, उसे लेकर मैं बहुत आगे तक कभी नहीं बढ़़ सकता। मैं हमेशा परमेश्वर को दोष देता, और मेरे जीवन का द्वार बंद हो जाता। आगे बढ़ने के लिये मेरे पास यही एकमात्र तरीका था।’’

मृत्यु

24 सितंबर 2003 को 88 वर्ष की आयु में स्वाभाविक कारणों से डेरेक प्रिंस का निधन हो गया था। उन्हें लंबे समय तक स्वास्थ्य में गिरावट का सामना करना पड़ा था और यरूशलेम में उनके घर पर नींद में ही उनका निधन हो गया।

यरूशलेम में एलायंस चर्च अंतर्राष्ट्रीय कब्रिस्तान में दफनाया गया, डेरेक के कब्र के पत्थर पर इस प्रकार लिखा हैः

डेरेक प्रिंस
1915-2003
घर गये
वचन का एक शिक्षक
सत्य और विश्वास और प्रेम में
जो बहुतों के लिये मसीह यीशु में हैं
परमेश्वर विश्वासयोग्य है

1974 में सैन एंटानियो, टेक्सास में टिनिटी चर्च में प्रचार करते हुए डेरेक प्रिंस

बाइबल शिक्षक

1944 में, इस्राएल के किर्यत मोत्जकिन में एक चिकित्सा आपूर्ति डिपो में तैनात होने के दौरान, प्रभु ने डेरेक से स्पष्ट रूप से यह कहते हुए बात कीः

‘‘तुम सच्चाई और विश्वास और प्रेम में पवित्रशास्त्र के शिक्षक होने के लिए बुलाए गए हो, जो मसीह यीशु में बहुतों के लिए हैं।’’

यह डेरेक के वर्तमान स्टेशन से दूर एक दुनिया लग रही थी, लेकिन समय के साथ जैसे परमेश्वर ने 1941 में वायदा किया था, वैसे ही साकार हो गया

‘‘यह एक छोटी सी धारा की तरह होगा। धारा नदी बन जाएगी। नदी एक बड़ी नदी बन जाएगी। बड़ी नदी समुद्र बन जाएगी। समुद्र एक शक्तिशाली महासागर बन जाएगा, और यह आपके द्वारा होगा परन्तु कैसे, आपको अवश्य नहीं जानना चाहिए, आप नहीं जान सकते, आप नहीं जान पायेंगे।”

आज तक, डेरेक प्रिंस नाम सुदृढ धर्मविज्ञान और परमेश्वर के वचन की स्पष्ट लेकिन व्यवस्थित शिक्षा का पर्याय बना हुआ है। धर्मशास्त्र के अध्ययन के प्रति उनके दृढ़ विश्वास और समर्पण ने उन्हें अपने समय के सबसे सम्मानित और प्रशंसित बाइबल शिक्षकों में से एक बना दिया है।

डेरेक 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक और बाइबल शिक्षण संसाधनों के रचयिता हैं जो एक अमूल्य निधि है जो उनके जीवन के काम और जुनून को अमर कर देती है। इनका अनुवाद 100 से अधिक भाषाओं में किया गया है जो दुनिया भर के लाखों मसीहियों के लिए प्रेरणा और अध्ययन का स्रोत बने हुए हैं।

2003 में डेरेक की मृत्यु से एक वर्ष पूर्व, यरूशलेम के एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आज कलीसिया की सबसे बड़ी जरूरत क्या है। ‘‘बाइबल शिक्षक,’’ डेरेक ने उत्तर दिया, ‘‘गंभीर बाइबल शिक्षक।’’ बातचीत को याद करते हुए 2006 में पत्रकार ने लिखा था, ‘‘वास्तव में, उनके जैसे कुछ ही लोग हुए हैं।’’

डेरेक प्रिंस मिनिस्ट्रीस

मई 1971 में, डेरेक ने आधिकारिक तौर पर अपनी शिक्षाओं को प्रकाशित करने और वितरित करने के लिए फ्लोरिडा के फोर्ट लॉडरडेल में एक कार्यालय आरंभ किया। मूल रूप से डेरेक प्रिंस प्रकाशन के रूप में विख्यात इस संस्थान का संचालन धीरे-धीरे बढ़ता गया, और दिसंबर 1990 में इसका पुनः नामकरण डेरेक प्रिंस मिनिस्ट्रीज़ कर दिया गया।

आज, डेरेक प्रिंस मिनिस्ट्रीज के कार्यालय ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, रूस, दक्षिण अफ्रीका, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर के 45 से अधिक देशों में हैं। यह आत्मिक रूप से भूखे लोगों को संसाधन उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रतिबद्ध है, और ऐसा करने में, डेरेक द्वारा जुलाई 2002 में दर्शन साझा किए गएः

‘‘यह मेरी इच्छा है, और मैं प्रभु की इच्छा पर विश्वास करता हँ, कि यह सेवकाई उस कार्य को तब तक जारी रखे, जब तक कि यीशु वापस न आ जाए, जिसे परमेश्वर ने मेरे द्वारा साठ वर्षों पूर्व प्रारंभ पहले आरंभ किया गया।
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